कुछ लिखने का मन किया है
आज बहुत दिनों बाद।
मन किया है, नहीं नहीं….
शायद ज़ख्मों का दर्द हरा है
आज बहुत दिनों बाद।
ज़ख्मों का दर्द, नहीं नहीं….
शायद ख़ुद से बात हुई है
आज बहुत दिनों बाद।
ख़ुद से बात? हाँ हुई है,
शायद मेरा वक्त हुआ है साथ
आज बहुत दिनों बाद।
न लिख पाने की मजबूरी में तो
रोज़ रोता था मेरा मन,
खाली पन्नों पर रोईं हैं आँखें
आज बहुत दिनों बाद।
मन भी वही है, ज़ख्म भी वही हैं
दर्द भी है वही,
शायद शब्दों ने साथ दिया है
आज बहुत दिनो बाद।
मैं भी वही हूँ, मेरी मजबूरी वही है
और हैं खाली पन्ने भी वही
शायद कलम ने साथ दिया है
आज बहुत दिनों बाद…..
Wednesday, April 21, 2010
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